मुद्दतो बाद देख कर तुझको,
एक ख्वाबीदः आरजू मचली,
दिल की तपती हुई चटानो पर ,
जैसे खुल कर बरस गई बदली।
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ज़िन्दगी अब वबाल-ऐ-जान हुई,
देखते-देखते अनजान हुई,
अब तक इसका फरेब खाते रहे,
जब ढली उम्र तो पहचान हुई।
-मिर्जा मकसूद बैग 'दिवाकर'
Wednesday, October 15, 2008
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